फूल चुन रही है
शरद की ठण्ड जब हुई प्रचंड, तब तो सूर्य के दर्शन भी दुर्लभ हुए।
ऋतुराज का आगमन होते ही, प्रकृति के सारे दृश्य भी सुलभ हुए।
खुशी में गाते सब पक्षियों को, प्रकृति पूरी तन्मयता से सुन रही है।
बसन्त आने पर एक लड़की, हरी-भरी बगिया से फूल चुन रही है।
एक एकांत हृदय के भीतर तक, यों हरियाली उन्माद भर देती है।
जो काम दवा-दुआ न कर पाएं, वो काम बसन्त ऋतु कर देती है।
फूलों की तरह मैं भी खिलूंगी, वो ख़्यालों में यही स्वप्न बुन रही है।
बसन्त आने पर एक लड़की, हरी-भरी बगिया से फूल चुन रही है।
बसन्त के संग में रंग-बिरंगे फूल, शीत की चुप्पी तोड़कर आते हैं।
फूलों की खोज में सुबह-सुबह, बच्चे उपवानों में दौड़कर आते हैं।
प्राणी व प्रकृति का सम्बन्ध देख, स्वयं धरती भी मानो गुन रही है।
बसन्त आने पर एक लड़की, हरी-भरी बगिया से फूल चुन रही है।
ऋतुराज की मस्ती बिछड़ी, खिलखिलाती हर एक हस्ती बिछड़ी।
बच्चों का बचपन बिगड़ गया, आज वन-उपवन से बस्ती बिछड़ी।
शरद में फूलों के मुरझाने पर, आज निराश ऋतु माथा धुन रही है।
बसन्त आने पर एक लड़की, हरी-भरी बगिया से फूल चुन रही है।