फूल को,कलियों को,तोड़ना पड़ा
फूल को,कलियों को,तोड़ना पड़ा
मोहब्बत को रास्ते में छोड़ना पड़ा
ऐसी नाव पर सवार हो गए थे हम
बीच रास्ते नाब को मोड़ना पड़ा !!
जिन किनारों की थी मंजिल अलग
नदियों के किनारो को मोड़ना पड़ा
जिनकी गिरफ्त में थे हजारों दिए
साथ हवाओ का हमें छोड़ना पड़ा !!
कीट रेशम से रेशम अलग की गई
रोशनी अंधेरों से मिल अंधी हुई
जिंदगी से जिंदगी जुदा हो गई
सब खुद के भरोसे छोड़ना पड़ा
आवाज को हमने मौंन कर दिया
अंतरमन साइलेंट जोन कर दिया
खुद को अकेले हमने रहने दिया
यह रिश्ता भी हमको तोड़ना पड़ा !!
जुगनू की शिकस्त में जमाना हुआ
रोशनी तो महज एक बहाना हुआ
मंजिल तो मुकम्मल ना हो सकी
रास्तों में ही रास्तों से दौड़ना पड़ा !!
✍️कवि दीपक सरल