फूल और कली के बीच का संवाद (हास्य व्यंग्य)
कलियों ने फूलों से कहा!
बहन आजकल यह मनुष्य
जाति कर क्या रहे है !
अपने भाव दिखाने के लिए
हर जगह हमें साथ ले जा रहे है।
इनके दिल से किसी तरह का
कोई भाव आ नही रहा है।
इसलिए चेहरे पर यह अब
खुशी या दर्द का भाव
दिखा नही पा रहे है।
इसलिए शायद हर जगह
हमारी मदद लिए जा रहे है।
पहले तो ऐसा अक्सर होता नही था।
लोग बिना मेरी मदद के ही
अपनी खुशियाँ अपने दर्द
का इजहार कर लिया करते थे,
और बाद में हो सके तो
किसी तरह का कोई उपहार
दे दिया करते थे।
पर अब तो खुशी हो यह गम
हर जगह हमें साथ ले जा रहे है।
और तो और अब अपने मन के मुताबिक
हमें भी रंगो में बाँट रहे है।
गम में जाना है तो उजले रंग का फूल,
प्रेमिका को देना है तो लाल रंग का फूल
दोस्त बनाना है तो पिला रंग का फूल।
न जाने कितने चीजों के लिए
हमें कितने रंगो मे बाँट दिया है।
अपनी एकता को तो पहले
ही तोड़ रहे थे।
अब हमारी एकता को भी
तोड़ने में लगे हुए है।
ईश्वर पर तो हम सब फूल
साथ-साथ चढते थे।
अब हम प्रेमी ,प्रेमिका और
दोस्तो के लिए बँटने लगे है।
यह सब सुनकर फूल ने
अपनी चुप्पी तोड़ी,
बोली बहन इंसान बेचारे भी
अब क्या करे!
यह अपने अंदर प्यार या दर्द
का भाव कहाँ से लाए!
वह तो खुद मशीन बनते जा रहे है।
जिसके कारण उसके मन में
किसी तरह का कोई
भाव आ नही रहा है
इसलिए हर जगह हमें
साथ लिए जा रहे है।
~ अनामिका