फुटपाथ की जिंदगी (कविता)
फुटपातों पर अस्तित्व अपना ढूंढती जिंदगी।
खुद में खुद को ही फिरती ढूंढती जिंदगी।।
मिल जाता किसी कचरे में जब रोटी का टुकडा।
उस पल ही मुस्करा लेती फुटपात की जिंदगी।।
सो जाती फुटपातों पर होकर बेखौफ जिंदगी।
रहती बेफिक्र मौत से फुटपात की जिंदगी।।
ठिठुरती है सडकों पर पूस की रातों में।
बहाती पसीना जून में फुटपात की जिंदगी।।
न गम आज का , न फिकर है कल की।
मनाती जश्न आज का फुटपात की जिंदगी।।
-:)मोहित शर्मा स्वतंत्र गंगाधर