!! फिर फर्क क्यूं है ?!!
ईश्वर ने बनाये सब एक से
फिर दिलों में फर्क क्यूं है
तेरे जैसा मॉस है मुझ में
फिर तेरी चाहत में फर्क क्यूं है ??
इस बनावट में कोई भेदभाव नहीं
पर तुझ में ऐसा क्यूं है
जो तुझ को सौंपा है रब है
फिर तेरे दिल में मैल क्यूं है ??
दो कदम तू चलता है
और चलता तो मैं भी दो ही हूँ
फिर इस दो कदम की चाहत में
चार कदम की रखता तू क्यूं है ??
जिन्दगी का अंत तो
दो गज जमीन में बना हुआ है
फिर तू इस की चकाचौंध में
रात दिन इतना भटकता क्यूं है ??
बुराई को खोजता है औरों में
अपनी पर परदे डाल रहा है
करता जा न सही से सारे काम
फिर दिल में तेरे ये मारामारी क्यूं है ??
अजीत कुमार तलवार
मेरठ