फितरत
दर्द मेरा मुझे ही छलने लगा
पलक बंद होते ही
मोतियों सा झरने लगा
होठों पर मुस्कान बरक़रार रही
भीतर भीतर अकेला रहने लगा
बहुत समझाया किसी ने
दर्द बांटना बेकार है,
सौदा ही करना है
तो आंसू बेच कर
मुस्कान सजा ले
पर कहां समझा नादान मन
उसकी फितरत में दिखावा था
दर्द बसा लिया दिल में
बाहर –बाहर हंसने लगा।