फितरत
मंजिल तो मेरी तय है।
अब रास्तों की तलाश है॥
मेरे संस्कार का स्वभिमान
मेरी रग – रग में है बहता,
चाटुकारों की महफिल में
कोई पसंद नहीं है करता,
तारीफ करे या शिकवा
चरित्र मेरा अटल है,
मंजिल तो मेरी तय है।
अब रास्तों की तलाश है॥
ख्वाहिश मेरा है इतना
निराश्रितों के काम आउँ,
मजलिस में छाये रौनक
चाहे मैं मर क्यूँ न जाउँ,
रहे अभिमान आखिरी तक
फितरत मेरी बुलंद है,
मंजिल तो मेरी तय है।
अब रास्तों की तलाश है॥
जीवन के हर मुश्किलों में
मेरे मलिक ख्याल रखना,
अहंकार मुझमें न आए
इस चमक से दुर रखना,
तन्हाईयों के आलम में
मेरी अंदाज पुरानी है,
मंजिल तो मेरी तय है।
अब रास्तों की तलाश है॥