फितरत
तुम्हे किस्सा सुनादूं आज,
मैं फितरत अजीब का।
लोगों ने दिया धोखा,
उस बदनसीब का।।1।।
फितरत में था उसकी,
सबको बांटना खुशी।
लोगों ने उसके साथ,
उसकी छीन ली हंसी।।2।।
दरियादिली का उसको,
परिणाम ये मिला।
जितनों को उसने माना,
सबसे दगा मिला।।3।।
एक रोज उसने अपनी,
किस्मत से बात की।
बिखरे हुए थे जो पल,
उनसे मुलाकात की।।4।।
उन पलों ने बोला,
ज़माना खराब है।
वे लोग ही भले है,
जो पीते शराब है।।5।।
अब तुम भी इनके बीच,
से जाने की ठान लो।
इनको है बताना मुश्किल,
तुम ये बात मान लो।।6।।
फितरत न बदलपाया,
वो इंसान अजीब था।
किसी के भी लिए,
उसका दिल करीब था।।7।।
स्वरचित काव्य
तरुण सिंह पवार
02/07/2023