फितरत से वाकिफ हूँ मैं हर चाल पहचानता हूँ
फ़ितरत
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मैं किस हाल में हूँ बखूबी ये बात जानता हूँ,
टूटता गिरता बार बार खुद को संभालता हूँ !
ऐसा मेरी फितरत में नहीं दोष दूँ किसी को,
अपनी बर्बादी की वजह खुद को मानता हूँ !
रखते है डसने का हुनर दूध पिलाने वाले को,
ऐसे कई सपोले अपनी आस्तीन में पालता हूँ !
जाने किस वक्त बदल जाए इस हवा का रुख,
इसलिए मैं आँचल खुद का पहले संभालता हूँ !
गिरगिट सा बदलने की फितरत नहीं मुझमे,
फ़ैसला कायम रखता हूँ एक बार ठानता हूँ !
मेरे कटे परवाज़ पर न जा अभी हिम्मत बाकी है,
परिन्दा-ऐ-बाज हूँ ऊँची उड़ान भरना जानता हूँ !
कई बार गुजरा हूँ ऐसी शतरंज की बिसातों से,
फितरत से वाकिफ हूँ मैं हर चाल पहचानता हूँ !
!
स्वरचित मौलिक : डी के निवातिया