फितरत की कहानी
वक़्त बदल जाता है बदल जाते हैं मौसम,
बदलाव के साथ चलती है ये कुदरत।
नहीं बदलती है कभी पर वो,
जो है इंसान की फितरत।
फितरत इंसान की परछाई है,
उसी के साथ-साथ चलती है।
जिंदगी के लम्बे सफर में,
कभी छिपती और उभरती है।
चेहरा बदल जाये फिर भी,
फितरत से इंसान पहचाना जाता है।
अच्छे और बुरे वक़्त में वो,
अपनी फितरत से ही जाना जाता है।
फितरत तो फिर,
फितरत होती है,
किसी की भली तो,
किसी की बुरी होती है।
इश्क़ में किसी की,
बुरी फितरत भी रास आती है।
जो प्यार न हो तो,
अच्छी फितरत भी न भाती है।
फितरत का खेल अनोखा है,
बड़े को छोटा और छोटे को बड़ा बना देती है।
सही फितरत भी कभी काम न आये,
पर बुरी फितरत कभी भाग्य जगा देती है।
मरने के बाद भी जो,
छोड़ जाती है अपनी लत।
याद रह जाती है बस,
इंसान की वो “फितरत”।