फ़ेसबुक पर मेरे विचार
क्या ये वही फेसबुक है
क्या ये वही फ़ेसबुक है?
आकर जहाँ थी शान्ति मिल जाती ।।
क्या ये वही है सदन?
जहाँ जनमानस करते थे अभिनन्दन ।।
अब ऐसी अनुभूति कहाँ होती है।
हर जगह एक द्वन्द दिखती है।
कहीं जाति और कहीं भ्रष्टाचार का द्वन्द।
और आरक्षण पर प्रतिद्वन्द ।।
प्रतीत हो रहा यह मानो फ़ेसबुक परिवार न हो।
कोई चलता-फिरता बाजार हो।।
है जहाँ लोग एक दूसरे की भावना का मोल लगाते।
और अपने को प्रतीत होते सर्वश्रेष्ठ बतलाते ।।
है लगा यहाँ कुछ ऐसे लोगों का समाहार।
हैं सिर्फ केवल आए जो करने अपना प्रचार।।
कहीं जाति,कहीं दशा और अपनी दुर्दशा का बखान ।
प्रतीत हो रहा कारणवश फ़ेसबुक विषाक्तपुष्प का सा उद्यान।।