फ़ितरत बदलेगी
बदलना ज़ब तय ही है तो,
नियति बदलेगी कुदरत बदलेगीl
प्रेम – भाव के अधूरेपन की,
कभी न कभी तो फ़ितरत बदलेगीl
अधूरे स्वप्न अधूरा जीवनl
आधे -आधे में कटता जीवनl
क्या जीवन के हर इक आधे को,
कोई पूरा – पूरा जोड़ सकेगाl
जीवन के अधूरेपन के भ्रम को,
कोई पूरा -पूरा तोड़ सकेगाl
सबकुछ मुकम्मल करने के खातिर,
सहज भाव से मोहब्बत बदलेगीl
प्रेम – भाव के अधूरेपन की
कभी न कभी तो फ़ितरत बदलेगीl
मूक अधर से गुप्त शब्द,
गुमनाम हुए कानों तक जाकेl
हमने तो खोया है बहुत कुछ,
आते -जाते, खोते – पाते l
शायद कुछ हासिल हो मुझको,
ज़ब नियति अपनी नीयत बदलेगीl
प्रेम – भाव के अधूरेपन की,
कभी न कभी तो फ़ितरत बदलेगी l
आशाओं के सागर में अक्सरl
डूबते -उतरते रहते रह -रहकर
ख्वाब की नैया, ख्वाब खिवैया,
ख्वाब की ही पतवार लिएl
वक्त ज्वार – भाटा सम आता,
हर पल संग हाहाकार लिए l
कहाँ पता था के रंगहीन आब की,
बोझिल पल में भी रंगत बदलेगीl
प्रेम – भाव के अधूरेपन की,
कभी न कभी तो फ़ितरत बदलेगीl
जरूरत तय करती है के,
कौन जरूरी है जग मेंl
पाँव शांत हो जाते हैं अक्सर,
विपत्ति के सम्मुख डगमग मेंl
अंत सब कुछ खो देने पर,
नए सिरे से संगत बदलेगीl
प्रेम – भाव के अधूरेपन की,
कभी न कभी तो फ़ितरत बदलेगीl
-सिद्धार्थ गोरखपुरी
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश