फ़ितरत बदलती है
सुना है वक़्त जो गुज़रे तो फिर शोहरत बदलती है
मगर ये चीज़ ऐसी है कहां फ़ितरत बदलती है
बिला वजह हमेशा तुम उसे ताकीद करते हो
किसी के मशवरे से क्या कहीं आदत बदलती है
हमारी सारी कोशिश तो यहां नाकाम होती है
बदलना हो अगर कुछ तो फ़क़त कुदरत बदलती है
शहर में घूमने ही लोग तो केवल नहीं जाते
कभी घर से जो निकलो तो ज़रा इज़्ज़त बदलती है
भरोसा इसलिए मुझको मुहब्बत पर नहीं होती
ज़रा सी ये पुरानी हो तो फिर चाहत बदलती है
——————————-
-डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री
सहायक प्रोफेसर हिन्दी
मिर्ज़ा ग़ालिब कॉलेज गया, बिहार
9934847941