फ़ितरत-ए-साँप
आप जहाँ पाँव रखोगे,
ये वहीँ अपनी पूँछ मानेंगे,
इनकी यही फ़ितरत है,
ये बिना डसे कहाँ मानेंगे।
आपकी साधारण लब्धि भी
इनके लिए कारण है एक,
विष-वमन कर देंगे,
वैसे है ये उदाहरण एक।
आपके एक-एक शब्द में
असंख्य अर्थ तलाशेंगे,
अपनी गढ़ी हुई स्क्रिप्ट में
ये आपको फांसेगे।
सिर्फ इनके गीत ही फाग हैं,
ये अपने सुर ही अलापेंगे,
अपने सुरों के मीटर पर
सबकी ग़ज़ल मापेंगे।
इनसे सहानुभूति भी
रखना बड़ा अभिशाप है,
यूँ समझिये आपके विरुद्ध ही
होंगे खड़े जैसे कि शाप है।
दोस्त और दुश्मनों का
फर्क कब करते हैं ये,
सिर्फ एक बाँट रखकर ही सबको
एक पलड़े में तौलते हैं ये।
जब कभी भी जान लो
कोई फितरती ऐसा आस-पास,
भूलकर भी गुजरो नहीं
उसकी छाया के भी पास।
वर्ना खा जायेंगे ये
डस-डस तेरे व्यक्तित्व को,
खुद मरेंगे डाह में
लेकर साथ में आपको।
बीस गज फासला रखो
सांड से, ये पढ़ा पुराण से,
नौटंकियाँ जीवन इनका जानो
पाला पड़ गया किसी भांड से।
(c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”