प्रेरणा
एक छोटा सा पौधा !
जिसकी कोपलें अभी खिली हीं थी ,
शरारती हाथो द्वारा जड़ से उखाड़ फेंका गया ,
बेचारा दर्द के मारे सुबकता रहा ,
हवा का झोंका उसे उड़ा सूखी पत्तियों के
झुंड में ले आया ,
सूखी पत्तियों के बीच नन्हा पौधा
घबरा सा गया ,
सूखी पत्तियों ने कहा बेटा !
घबरा मत हम तेरे साथ हैं !
तुम्हे हम हर मुसीबत से बचाकर रखेंगें !
हमारे तो दिन पूरे हो गये हैं पर तुम्हारे दिन फिरेंगें !
फिर मिट्टी ने कहा !
तू मेरी गोद में सलामत है !
तेरे फूलने फलने के दिन हैं,सब्र रख !
तू मेरी अमानत है !
तुझे बादलों की ममता बारिश से
सराबोर कर देगी !
तेरी जड़ें जमाकर तुझमें
नवजीवन का संचार करेगी !
यह सुनकर नन्हा पौधा शांत हुआ ,
उसमें आत्मविश्वास पैदा हुआ ,
बारिश की बूदों ने प्रेम- जल से
उसका अभिषेक किया ,
माटी नें उसकी जड़ों को स्थिरता का
धरातल प्रदान किया ,
इस तरह वह नन्हा पौधा अपने पर्यावरण के
सानिन्ध्य में बड़ा होकर ,
प्राणी मात्र सेवा प्रतीक एक वृक्ष में परिवर्तित हुआ।