प्रेम
#दिनांक:-18/3/2024
#शीर्षक:- प्रेम
एक दस्तूर चला आ रहा है ,
दिल शीशे सा हर रोज तोड़ा जा रहा है,
कम नहीं होने का नाम है मुहब्बत ,
एक मरता,
दस जिन्दा हो रहा है,
उम्मीद की बारीक धागे से,
बंध जाता है हर कोई ,
एक अजीज ना मिला तो क्या,
दूसरा आजमाता है हर कोई,
नेह के मेह में मदहोश है दुनिया,
प्रेम सार्वजनिक राह है,
इस पर चलना चाहता है हर कोई ,
प्रेम के महासागर में एक बार,
डूबता है हर कोई ,
भले वादा झूठा हो,
पर निभाता है हर कोई ,
प्यार इंसान के खून का कतरा है,
जहाँ-जहाँ गिरता है,
रक्त बीज सा,
नया पौधा बन जाता है ,
कोई किनारे में लटक जाता है ,
तो कोई रूह में उतर जाता है ,
किसी की कामयाब होती है मुहब्बत ,
तो किसी की बीच सफर में,
बिखर जाता है ,
कोई भूल कर नयी जिन्दगी बसा लेता है ,
तो कोई ताउम्र इंतज़ार करता है….|
बस प्रेम का।
रचना मौलिक, स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है|
प्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई