प्रेम……………………………………………….
प्रेम………………………………………………..
तो रोते क्यों हो,
सहारा दूसरों का ढूंढ़ते क्यों हो,
आस पकड़ किसी की चलते क्यों हो,
जब कोई साथ नहीं देता
तब थाम लो अपना ही हाथ,
निकल चलो ख़ुद के ही साथ,
बनाओ अपनी पहचान,
भरो बिन पंखो के उड़ान
फिर देखो संग है तुम्हारे
ये सारी धरती, ये खुला आसमान,
फिर क्यू साथ ढूढ़ते हो,
रो लो मन हलका होगा,
कोई नही देगा तुम्हारा साथ ,
अकेले चलना सीखो पकड़ंडी पर,
कोई नही है तुम्हारे साथ,
वक्त की बात है ज़नाब,
अकेले चलना सीखो😊😊
(स्वरा कुमारी आर्या) ✍️