प्रेम
प्रेम हृदय वीणा का तार होता है।
गहरे आनंद में अनछुआ सोता है।।
प्रीत के बीजारोपण से स्पंदित हो।
अंतरमन तब कुछ-कुछ होता है।।
बजने लगती है वीणा झंकृत हो।
जब प्रियतम आनंद में खोता है।।
प्रेम मायने संगीत सप्तस्वर का।
बजता मध्य,तारसप्तक स्रोता है।।
प्रेम न अधीन है न स्वाधीन है।
आत्मुग्ध आनंद मन बोता है।।
मीरा,प्रेम की वीणा पर गाती ।
मन हो कृष्णमय प्रेम में रोता है।।
मीरा परिहार 💐✍️