प्रेम
प्रेम पर्याय है प्रतिबद्धता का!
सम्पूर्ण समर्पण कटिबद्धता का!!
जहँ न कोई ,नू- नकर होती,
बस निबाहने की वचनबद्धता का!!
है यही सनातन संस्कृति आदर्श,
भाव दो का न हो,एकबद्धता का!!
आत्मा का ज्यू मिलन परमात्मा से,
सुफल जीवन समर्पण शुद्धता का!!
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट नीरव निकुजं,सिकंदरा आगरा
मौलिक रचना सर्वाधिकार सुरछित