प्रेम हाला….
** प्रेम – हाला **
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पी ली मैंने पी की प्रेम-हाला
मन आनंद मदमस्त मधुशाला
बन पिय की हृदय रानी
गुलाबी-सा खुमार जानी
छाया प्रिय प्रेम का गरूर
पसर-पसर जाता सरुर
बना मन प्रेम-मधुशाला
प्रेम मधु पी बनी मधुबाला
हाँ पी ली मैंने पी की प्रेम-हाला ..
तेरी हल्की-सी छुअन
आकंठ भर देती कम्पन
नयनों में तेरा ही सतत चिंतन
दिखते सतरंगी सपने अनुक्षण
बड़-बड़ाऊँ लड़खड़ाऊँ होले-होले
रूठूँ मनाऊं लिपट-लिपट जाऊं
प्रेम मगन मन-डोले खाए हिचकोले
डूबती-तैरती-सी मचलती जाऊं
सागर की लहरों-सी इठलाऊं
प्रेम मधुर रस पी बनी प्रेम बाला
हाँ पी ली मैंने पी की प्रेम-हाला ….
वन में फैली शान्ति सी शांत हो जाऊं
किसी तरु शाखा-सी झूम-झूम जाऊं
कभी खग-पिक-सी प्रेम सुर गाऊं
सुधी तन-मन की भूल-भूल जाऊं
मन ही मन आनंद उत्सव मनाऊं
प्रेम सुधा रस पी बनी सुरबाला
हाँ पी ली मैंने पी की प्रेम-हाला …
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डॉ. अनिता जैन ‘विपुला’