‘प्रेम’ ( देव घनाक्षरी)
प्रेम की दीवानी राधा,
प्रेम की दीवानी मीरा,
दोनों ही पुकार रही,
हे! गिरिधर-गिरिधर।
कृष्ण तो हैं राधा के तो,
मीरा के गोपाल बाल,
राधे बसी श्याम मन,
मीरा को भाये नटवर।
प्रेम रस धार बहे,
राधे श्याम मीरा मन,
तरसे हैं गोपी ग्वाल ,
चितवन को चक्रधर।
नंद के आँखों के तारे,
यशोमती माँ के प्यारे,
गोगुल के वे दुलारे,
मुरलिया धरे अधर ।
स्वरचित-
गोदाम्बरी नेगी