🌺🌺प्रेम की राह पर-9🌺🌺
37-मुदित प्रकरण की सूचना प्राप्त होना निश्चित ही नेत्रों को सजल करता है।इस शरीर में कोई यदि सबसे ज़्यादा पीड़ा महसूस करता है तो वह नेत्र हैं।विकार की पुष्टि हो जाने पर अनायास रुदन की क्रीड़ा को यह विश्राम दे देकर उठाते हैं।प्रसन्नता की भूमि और दुःख की लहरों में उठे अश्रु जितना अंतर ग्रहण करते हैं।वहीं अंतर शुद्ध प्रेम और वासनायुक्त प्रेम में है।शीतरश्मि जिस प्रकार उष्णता में बड़ी सुखद लगती है।घट का शीतलजल पिपासा को त्वरित शान्त करने में प्रवीण है।समुचित ज्ञान उन सभी व्यवधानों को,जो किञ्चित भी हमारी गुणों को प्रभावित करते हैं,समाप्त कर आत्मिक शान्ति के मार्ग को पुष्ट करता है।यह जो जागतिक व्यापार हैं यह हमें कभी भी संतुष्ट न करेंगे जब तक हम उन्हें प्रेमाप्लावित न करें।शनै:-शनै: बढ़ती उम्र उन सभी अनुभवों के वारिधि को समेट रही है।कोई मञ्जुल है तो अमन्जुल।मात्र हम इन्हें कैसे ग्रहण करेंगे।यह उन सभी हमारे धर्मों की नींव पर निर्भर करता है जो अपने अन्तःकरण में स्थापित कर लिए हैं।।हे शान्ति!मैंने तुम्हारे अन्दर शान्ति को ही देखा।परं तुमने कोई भी ऐसे किसी भी विवेकपूर्ण कृत्य को आविष्कृत न किया जो हमारे तुम्हारे मध्य एक वैचारिक सेतु का निर्माण करता।चलते रहो, चलते रहो(चरैवेति)।गधा हो क्या?जीवन का कोई लक्ष्य न हो तो चलना बेकार है।कब तक चलोगे।थक जाओगे और हंसोंगे अपनी मूर्खता पर।बिना किसी निश्चित प्रयोजन के सततता पुण्य के मूल को खोजने जैसी है।सन्तोष भी तब तक न किया जाए जब तक हम अपने शक्तिशाली प्रयासों में भी शिथिल न हो जायें।परं वह प्रयास किस मूल्यवान वस्तु के लिए है यह भी ज्ञेय होना चाहिए।एक लड़की के सांसारिक प्रेम के लिए प्रयास, प्रयास नहीं मूर्खता है।उत्थान के मार्ग तो तभी खुलेगा जब आप लोकोपकारी परमार्थिक कर्मों के लिए अपने प्रेरक कदमों को बढ़ाएंगे।यह सफलता नहीं है कि आप एक निश्चित कर्म प्रेरक आसान को पा गए और बन गए विलासी।नहीं कर्म में शालीनता विलासिता कभी नहीं ला सकती।हे लँगूरी।न न अँगूरी।मेरे प्रेम में विलासिता का पूर्णतया अभाव है।हाँ शालीनता को प्राप्त करने का प्रयास करता रहा।खैर तुम निष्ठुर ने मेरे प्रेमावेदन पर थूक दिया।वह भी पान का।वह कभी छूटने वाला नहीं है।मैं अपराध प्रबोधक नहीं हूँ और न तुम अपराध पोषक हो।तो साम्य तो कहीं न कहीं गोते लगा रहा है और तुमसे तो तैरना भी आता है।तो डूब जाओ उसके चरित्र में।जिसकी सूचना एकत्रित करना चाहते हो।तुम्हारा तैरना कहाँ तक सीमित है।यदि जल तक सीमित होगा।तो संसार सागर से स्वानुरूप संवाद,जनों और संगति को कभी न प्राप्त कर सकोगे।तुमसे तैराकी संसार सागर से डूब कर पार करने में भी आनी चाहिए।संशोधित विषय पर विचार करने से पूर्व संसोधन सर्वप्रथम करना हो तो अपनी संगति में संसोधन कर लें।व्यक्ति को उसकी बातों से जाने।उस व्यक्ति को अपनी निजी पहचान दें।फिर उसे परखते रहें।साधन अपने बनाएँ,इसमें ईश्वरीय शक्ति का सहयोग लेंवे।पुनः-पुनः उन भंगिमाओं को त्याग करते रहें जो निश्चित ही अवसादपूर्ण हैं तो अवसाद नहीं देंगी।यादृच्छिक कभी-कभी अपने व्यवहार की मिति से अपने दोषों का मार्जन बहु सरलता से सम्पन्न किया जा सकता है।जिसे स्वीकार कर अपने जीवन में अनुपालन करें।नितान्त सहयोग के आश्रित न रहें अर्थात ग्रामीण भाषा में सौ फूट जाएँ तो ही सहयोग का आश्रय ले।मैं यह सब उन सभी तुम्हारे दोषों के प्रति कह रहा हूँ।जिनसे तुम कभी पुनः न थूकोगे मेरे ऊपर।फिर थूक दोगे तो भी कोई बात नहीं।।मैं उस समय अनाथ न था जब यह सब तुमसे कहा था।हाँ समय का बन्धन था बहुत दर्दनाक।उस दर्द को कम करने के लिए कोई मलहम नहीं है।हाँ, एक है,हो कुछ भी तुम यदि अपनी पुस्तक भेज दोगी।तो मैं निश्चित ही इसे अपना मलहम समझूँगा।मुझे किसी भी प्रकार से गलत न समझना।तुमने तो मेरे गोपनीयता भंग की पर मैं कैसी भी तुम्हारी गोपनीयता भंग नहीं करूँगा।तुम इन सभी बातों को किस आधार पर ग्रहण करते हो।मुझे नहीं पता।परन्तु मेरे इस लेखन से मेरा निबन्ध का टॉपिक तैयार हो जाता है।तुम अभी भी अपने घटिया विचारों में शयन कर रही हो।तो करती रहो।यह मौसम भी नहीं रहेगा।मूर्ख शिरोमणि।
©अभिषेक: पाराशर:
💐💐बहुत ज़्यादा निष्ठुर हो💐💐
तुम और तुम्हारे मित्र इसी जगह पर रहते हो👆