प्रेम की प्यास जगी है
घायल मनवा भाग रहा है गोरी तेरे पीछे
नयनन मारी प्रेम कटारी करके धूंघट नीचे
प्यासे हैं दो नैना सजनी कबसे तरस रहे हैं
व्याकुल हैं दर्शन को तेरे,सावन से बरस रहे हैं
सूनी है मन बगिया मेरी तुम विन उजड़ रही है
खिलते नहीं सुमन तेरे विन न कोयल कूक रही है
जला रहा वासंती मौसम दिल में आग लगी है
स्वाती बनकर बरसो सजनी प्रेम की प्यास जगी है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी