प्रेम की परिभाषा
प्रेम नहीं शादी का बंधन
प्रेम नहीं रस्मों की अड़चन,
प्रेम नहीं हैं स्वार्थ भाषा
प्रेम नहीं जिस्मी अभिलाषा
प्रेम अहम् का वरण नहीं हैं
प्रेम तड़प में मरण नहीं हैं ,
प्रेम नहीं मन का बहलावा
प्रेम नहीं हैं कुटिल छलावा
प्रेम नहीं हैं बेपरवाही
प्रेम नहीं हैं आवाजाही,
प्रेम नहीं वादों का घात है
प्रेम नहीं एक छली रात हैं
प्रेम है पूरव, प्रेम हैं पश्चिम
प्रेम है उत्तर, प्रेम है दक्षिण,
प्रेम हैं जनता, प्रेम ह्रदय है
प्रेम दिवाकर, प्रेम उदय है
प्रेम हैं राधा, प्रेम हैं मीरा
प्रेम हैं सीता, प्रेम है पीरा,
प्रेम त्याग है , प्रेम समर्पण
प्रेम कृष्ण है, प्रेम है तर्पण!
प्रेम हवा का इक झोखा है
बहते पानी का सोता है,
सूनेपन में जब दिल रोये
समझो प्रेम वही होता है..
– नीरज चौहान