प्रेम का रंग बहुत निराला
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प्रेम का रंग बहुत निराला जो सब रंगों से न्यारा है
प्रेम रंग मे रंग जाए रंगीला लगता सबसे प्यारा है
होते बहुत अभागे जो ईर्ष्या, क्रोध में लीन रहते हैं
अनुराग बिना बैरागी बन जाते उम्र भर पछताते हैं
मानव जीवन बहुत अनमोल,मिलता नहीं दुबारा है
प्रेम रंग में रंग जाए रंगीला लगता सबसे प्यारा है
मोह लोभ में जो डूबा रहे मिलता नहीं किनारा है
प्रेमरस से जो वंचित रह जाए वो होते बेसहारा हैं
प्रेमगीत को गाने वाला होता अंखियों का तारा है
प्रेम रंग में रंग जाए रंगीला लगता सबसे प्यारा है
जितने भी रस जग अंदर नेह रस बहुत रसीला है
दुनिया की सर्वोत्तम ताकत पर होता ये लचीला है
प्यार अजर,अमर सदा रहता,संसार नश्वर सारा है
प्रेम रंग में रंग जाए रंगीला लगता सबसे प्यारा है
प्रेमपथ तो बहुत जटिल दिल में छाले पड़ पाते हैं
बेहिचक जो चलें पथगामी मंजिल पार हो जाते है
स्नेहियों के स्नेह में स्नेहिल पंछी उत्तम सितारा है
प्रेम रंग में रंग जाए रंगीला लगता सबसे प्यारा है
प्रेमबन्धन में शमां के संग परवाना भी जल जाए
मर जाए,कट जाए पर कभी कदम न पीछे हटाए
प्रेम जंग में सबकुछ जायज नहीं कोई भाईचारा है
प्रेम रंग में रंग जाए रंगीला लगता सबसे प्यारा है
प्रेमवश विष प्याला पी गई कृष्ण की मीरा प्यारी
आहिल्या की जूठन खाकर श्रीराम मिसाल बनाई
मनसीरत नेह में लथपथ दिखता सुन्दर नजारा है
प्रेम रंग में रंग जाए रंगीला लगता सबके प्यारा है
प्रेम का रंग बहुत निराला जो सब रंगों से न्यारा है
प्रेम रंग में रंग जाए रंगीला लगता सबसे प्यारा है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)