प्रेम का दरबार
चाह प्रेम की व्यर्थ है
प्रेम सकल संसार
कहो प्रेम से, प्रेम हूं
प्रेम करे भव पार
मन भीतर जो व्याप्त हैं
मन की समझ अपार
मन की शक्ति प्रेम है
भटके मन बेकार
धर्म-कर्म की बिसात है
माया चलती चाल
बंद आंख से देख लो
प्रेम का दरबार |