प्रेम कहानी यह अनजानी !
नहीं है कोई प्रेम कथा, अपितु अथाह विरह की व्यथा,
अनकही अनसुनी अजब कहानी,सागर और नदिया की रूह दिवानी ,
सागर गहराई के मद में चूर , नदिया बहने को मजबूर
सागर यश वैभव की पुंजी से भरपूर,पर नदी के सानिध्य से दूर ,
मिलने को सागर से आतुर, भुला के खुद का अभिमान
अठखेलियों में डूबी नादान ,चंचल अपलक भोली अनजान ,
मेघों की राह चली थी, फिर वर्षा बनकर बरस गयी थी
जाने कितना और फ़ासला था , सागर आलिंगन को तरस गयी थी
मिली जो नदिया सागर संग , झूम झूम थिरक उठा हर अंग
नीले में घुला नीला, हरा पीला माटी का महका सोंधा रंग I