प्रेम आँधी मेंबह गया
प्रेम आँधी में बह गया
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प्रेम आँधी में बह गया
मेरा अमूल्य सामान
देखते ही सब ढह गया
जुटा न पाया समाधान
कोशिशें तो थी खूब की
हासिल नहीं हुआ मुकाम
पल भर में ही लूट गई
दिल की भरी प्रेम दुकान
मायूसियों में बदल गई
होठों की मीठी मुस्कान
क्षण में यूँ ही बिखर गए
दिल के मेरे वो अरमान
सहता ही तो आया था
जीवन में घोर अपमान
रेत के टीले सा गिरा
मेरा नाम मान सम्मान
सुखविंद्र ने है खो दिया
फूलों सा प्यारा जहान
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)