प्रेत का बयान!
शीर्षक – प्रेत का बयान
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.
मो. 9001321438
प्रेत का बयान
शशशशश…….
फिर….!शशशश….
हवाओं के हवाले
खबर आई ……!
आकृति उलझती है
शब्द पिघलते है थोड़े
टूटते है अर्थ फिर!
शशशशश……….
बिखरती है बूँदें
क्षण भर विश्वास की
सींचते दुःख-दर्द
भटकती है आत्मा
शब्द से अलग होकर
अर्थ कविता के बहानें
उड़ते है ठोकर खाकर
बयान…! शशश……
फिर….!
प्रेत का बयान
कविता की भाषा में
कहना मुश्किल है।
कविता का बयान
नये जमाने के प्रेत का
हलफनामा है अर्थ का
शब्दों की अदालत में।