प्रीत
शुष्क लवों ,नीले कंठों से, कुछ कह लो
गंगा हो जाओ, थोडा, मुझमें बह लो,
नरम सिसकियां लेती रहती हो,
दिन भर तुम..
जज्बातों में तेज़ कहूं तो,
हंस कर सह लो !!
हरियाली की घोर घटा में छायी हो,
जैसे मेरा साया हो, परछाई हो,
उन चछुवों से दंभ की भाषा, दूर रहे
बस प्रीत हो ऐसी, जैसे सब शहनाई हो !! प्रीत हो ऐसी, जैसे सब शहनाई हो !!