प्रीत पगे पावन बंधन
उमड़ आएं कारे बदरा दामिनी चमक जात ,
बरसत धरा पे मेघा मानहुं अम्बर फट जात ।
व्याकुल विहग वृंद विभोर होत प्रणय गीत गात ,
आधीर अवनि को बूंदे प्यास देत बुझात ।
हरियाली चूनर ओड़ वसुंधा रही इठलात,
सरिता नव यौवन पाए मदहोश हो इतरात ।
रिम -झिम फुहार संग भीग सकल प्राकृति हर्षत ,
सावनी मास में सुता बाबुल आँगन तरसत ।
मुल्क अनोखा हमारो पर्वो की सुगंधि सौगात ,
प्रेम के धागे मूल्यों को प्राण देत चुकात ।
प्रीत पगे पावन बंधन को जिदंगी भर निभात ,
भैया -बहिना नेह को दृढ़ रक्षा-सूत्र बनात ।
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शेख जाफर खान