प्रीतम दोहावली
राजनीति उर बाँटती, जाति धर्म के नाम।
स्वार्थ सिद्धि में हम फँसे, समझ बिना नाकाम।।//1
प्रेम बिना संसार में, सब है मायाजाल।
जैसे बिन बरसात के, देती धरा अकाल।।//2
समझो बुरा समाज वो, करे मनुज में भेद।
सबकी अपनी भूमिका, क्यों करते हो ख़ेद।।//3
क़ातिल को देना सज़ा, सज्जन को उपहार।
सच्चा ये क़ानून का, पक्षरहित व्यवहार।।//4
स्नेह प्रेम अरु प्यार का, करो निरंतर पान।
जिसके उर संगीत ये, मधुर उसी का गान।।//5
जीत सको दुनिया मगर, वक़्त दिलाए हार।
फूला खिला वसंत-मुख, झेले पतझड़ मार।।//6
प्रीतम इस संसार में, अमर मधुर हैं बोल।
तन माया सब भ्रम मृदा, हृदय तोलकर खोल।।/7
आर. एस. ‘प्रीतम’