दोहे : प्रीतम के दोहे
हासिल करो मुक़ाम तुम, बड़ा शत्रु से मीत।
बिना जलन अरु बिन लड़े, बड़े बोल पर जीत।।
पाँव जले हैं धूप में, घृणा यार की धूप।
प्रेम मिले हँसता रहूँ, यह मीठा जलकूप।।
पत्थर लगता मैं उसे, रहा छुअन से दूर।
बैठ गगन में कह रहा, धरती बुरी हुज़ूर।।
बातें करता दोगली, समझे ख़ुद को संत।
समझ रहे इस सोच का, श्वान सरिस हो अंत।।
बेटी मधुर सुगंध है, बेटा आँगन फूल।
समता दोनों में रहे, सोच यही अनुकूल।।
जो जन झूठा रीति का, पागलपन की खान।
हीरा उससे दूर है, लगे कोयला मान।।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित दोहे