प्राण प्रतिष्ठा
जिस दौर में आत्मा मरती जा रही हो इंसान में,
यह कैसा प्राण डालने का दावा है पाषाण में ।
पाषाण में जान और इंसान आज मुर्दा है,
मानव तो मात्र आज एक मशीनी पुर्जा है ।
युगों-युगों से चलता आया रोग है यह,
राजनीति के लिए धर्म का दुरूपयोग है यह ।
तिल-तिल मर रही है रूह अब इंसान की,
विडंबना, प्रतिष्ठा पत्थर में हो रही है प्राण की ।
कैसा देश में धवंसों का निर्माण हो रहा,
जीवन यहां जब हर पल निष्प्राण हो रहा ।
जब मानव ही घट घट कर बेजान हो गया
फिर जाने कैसे जिंदा वो पाषाण हो गया ।
राजनीति करने से आओ बाज तुम,
जीवन इंसान का बचाओ आज तुम ।