प्रश्चित
पण्डित शील भद्र को पूर्ण स्वस्थ होने में एक महीने का समय लगना लाजिमी था वह तो डॉ महंत जैसा जीवट का डॉ था जिसने सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की सीमित संसाधन एव सुविधा में बहुत बड़ा जोखिम उठा कर पण्डित शीलभद्र का ऑपरेशन कर दिया और डैमेज हुई आंतो को रिपेयर कर दिया यदि वह जोखिम नही उठाते और पण्डित शीलभद्र को जिले के उच्च अस्पताल को अग्रसारित कर देते तो निश्चित रूप से पण्डित
शीलभद्र को नही बचाया जा सकता था।
स्प्ष्ट था डॉ महंत ने अपने व्यवसाय के सर्वोच्च मर्यादाओं का निर्वहन किया था उनको भली भांति यह भी मालूम था कि यदि उनके द्वारा इलाज के दौरान पण्डित शीलभद्र की म्रृत्यु हो जाती उस स्थिति में गांव वाले उनका जीना दुर्भर कर देते उन्होंने पण्डित शीलभद्र के जीवन को बचाने के लिए बहुत बड़ा जोख़िम उठा रखा था।
गांव वाले पण्डित शीलभद्र से मिलने सामुदायिक स्वास्थ केंद्र आते उनके कुशल क्षेम के बाद यही कहते पण्डित जी अब क्या करेंगे ?
अब तो आपकी रगों में भी रियासत चिक का लहू दौड़ रहा है अब पंडिताई छोड़के चिक के धंधा करेंके पण्डित जी को बुरा नही लगता इसके बावजूद कि गांव वालों की बातों ने उनकी भावनाओं को तार तार एव #कलेजा छलनी कर देते#
लेकिन सच्चाई का मुंह कैसे बन्द कर सकते थे ।
जब पण्डित शीलभद्र चलने फिरने लायक हुये तब उन्होंने डॉ महंत से सवाल किया पण्डित जी बोले डॉ साहब लोंगो एव गांव वालों की बातों को सुनकर मेरा #कलेजा रोज छलनी हो जाता है#
मैं स्वंय को अपराधी समझने लगा हूँ आप ही बताये मैं गलत कहाँ हूँ मैंने सनातन के सत्य सिंद्धान्तों का ही जीवन मे पालन किया जिसमें हिंसा वर्जित है फिर भी सजन कसाई भी है सनातन धर्म का मर्म मैं सिर्फ रियासत के पेशे से नफरत करता था रियासत से नही डा महंत ने कहा पण्डित जी यदि आप रियासत के पेशे से ही घृणा करते तो कोई बात नही आप तो उसकी परछाई से भी घृणा करने लगे वैसे भी सनातन का ही सिंद्धान्त है अपराध से घृणा करो अपराधी से नही।
कोशिश करो कि अपराधी ही अपराध से घृणा करते अपराध से ही दूर हो जाये आपने ऐसा नही किया ना ही आपने रियासत के जीविकोपार्जन के लिए विकल्प प्रस्तुत किया ना ही उसे सजन कसाई समझा ।
उंसे तो आपने अपराधी एव पापी मान लिया और प्रतिक्रिया स्वरूप आचरण में उतार लिया यही आपका अपराध है ।
होली जैसे मानवीय उल्लास उत्साह के त्योहार में सिर्फ रियासत द्वारा रंग लगाए जाने से आपने उंसे इतना दहसत में रखा की रियासत को आपके भय से छिप छिप कर गांव में आपके डर से रहता था जो ना तो सनातन संमत आचरण है ना ही सांमजिक व्यवहारिकता या मानवीय मौलिक मूल्य जबकि सत्य सनातन युग समय काल परिस्थिति के अनुसार अपने आचरण में बदलाव की अनुमति देता है ।
मनुस्मृति है जिसे इसी मूल सिंद्धान्त के कारण मानव स्मृति भी कहते है महाराज मनु ने समाज के नियंत्रण अनुशासन एव संचालन के लिए मनुस्मृति लिखी जिसमे आवश्यकतानुसार काल समय परिस्थिति के अनुसार अवसर देते हुए अपनी स्मृति को मानव समाज को समर्पित करते हुए मानव स्मृति बना दिया।
पण्डित शीलभद्र सनातन के उच्चकोटि के विद्वान थे बड़े ध्यान से डॉ महंत की बातों को सुन रहे थे।
जब डॉ महंत ने अपनी बात समाप्त किया तब पण्डित
शीलभद्र ने सिर्फ इतना ही कहा डॉ साहब मैं व्यक्तिगत तौर पर सभी धर्मों को बहुत गमम्भीरता से जानता हूँ क्योकि मैने सभी धर्मों के महत्वपूर्ण ग्रंथो को पढ़ा है वैसे तो सभी धर्म कही न कही जाकर एक ही रास्ता मानवता इंसानियत अहिंसा करुणा क्षमा सेवा त्याग का आदर्श है।
सनातन शौम्य एव संवेदनशील धर्म मार्ग है सम्पूर्ण मानवता के इतिहास में सनातन कभी आक्रांता नही रहा जबकि स्लाम क्रूर आक्रांता दोनों ही है और रहा भी है रियासत से व्यवहार एव आचरण के मसंले मे मैं कही न कही सत्य सनातन की मर्यदा मौलिकता की संवेदना भूल कर आक्रामक हो गया था यही मेरा अपराध है ।
रियासत के जीविकोपार्जन के लिए किया जाने वाला व्यवसाय उसके व्यक्तित्व कि पहचान नही हो सकते इसी अपराध की पीड़ा से मैं कराह रहा हूँ और लज्जित भी हूँ डॉ महंत ने कहा पण्डित शीलभद्र जी शिघ्र स्वस्थ हो जाइए रियासत ही आपको अस्पताल से गांव ले जाएगा तब तक मिलने आने वालों के #शब्द वाणों से कलेजा छलनी होने दीजिए#
एव उड़की पीड़ा कि अनुभूति हृदय की गहराई से कीजिये यही प्राश्चित है ।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।