प्रभु
थोड़ा समय निकालकर ज़रूर पढ़ें-
एक दिन सुबह-सुबह दरवाजे की घंटी बजी, मैं उठकर आया, दरवाजा खोला तो देखा एक आकर्षक कद काठी का व्यक्ति चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान लिए खड़ा है।
मैंने कहा- “#जी_कहिए?”
तो वह बोला- “अच्छा जी..!! आज जी कहिये,
रोज़ तो एक ही गुहार लगाते थे..!!
प्रभु सुनिए, प्रभु सुनिये..!! आज, जी कहिये वाह..!!
मैंने आँख मसलते हुए कहा-
“माफ कीजीये भाई साहब..!! मैंने पहचाना नहीं आपको”
तो कहने लगे- “भाई साहब नहीं..!!
मैं वो हूँ जिसने तुम्हें साहेब बनाया है।
#अरे_ईश्वर_हूँ_मैं..!! #ईश्वर..!!
‘तुम हमेशा कहते थे, नज़र में बसे हो पर नज़र नहीं आते,
लो आ गया..!! अब…
#आज_पूरा_दिन_तुम्हारे_साथ_ही_रहूँगा”।
मैंने चिढ़ते हुए कहा- “#ये_क्या_मजाक_है?
अरे मजाक नहीं है..!! सच है..!!
सिर्फ तुम्हें ही नज़र आऊंगा, तुम्हारे सिवा कोई देख-सुन नहीं पायेगा मुझे’।
कुछ कहता इसके पहले ही पीछे से माँ आ गयी।
‘ये अकेला ख़ड़ा-खड़ा क्या कर रहा है यहाँ। चाय तैयार है, चल आजा अंदर..!!”
अब उनकी बातों पे थोड़ा बहुत यकीन होने लगा था और मन में थोड़ा सा डर भी होने लगा था।
मैं जाकर सोफे पे बैठा ही था तो बगल में वो आकर बैठ गए, चाय आते ही जैसे ही पहला घूँट पिया, गुस्से से चिल्लाया- “यार..!! ये चीनी कम नहीं डाल सकते हो क्या आप”।
इतना कहते ही, ध्यान आया अगर ये सचमुच में ईश्वर है तो इन्हें कतई पसंद नहीं आयेगा कि कोई अपनी माँ पर गुस्सा करे।
अपने मन को शांत किया और समझा भी दिया कि भाई “#तुम_नज़र_में_हो_आज” ज़रा ध्यान से…
बस फिर में जहाँ-जहाँ, वो मेरे पीछे-पीछे पूरे घर में।
थोड़ी देर बाद नहाने के लिये जैसे ही में बाथरूम की तरफ चला तो उन्होंने भी कदम बढा दिए।
मैंने कहा- “प्रभु यहाँ तो बख्श दो”
खैर नहा कर, तैयार होकर मैं पूजा घर में गया, यकीनन पहली बार तन्मयता से प्रभु को रिझाया क्योंकि आज अपनी ईमानदारी जो साबित करनी थी।
फिर आफिस के लिए घर से निकला, अपनी कार में बैठा, तो देखा, बगल वाली सीट पर महाशय पहले ही बैठे हुए हैं, सफर शुरू हुआ, तभी एक फ़ोन आया और फ़ोन उठाने ही वाला था कि ध्यान आया “#तुम_नज़र_में_हो”।
कार को साइड में रोका, फ़ोन पर बात की और बात करते-करते कहने ही वाला था कि “इस काम के लिए ऊपर से पैसे लगेंगे”।
“पर ये तो गलत था, पाप था तो प्रभु के सामने कैसे कहता तो एकाएक ही मुँह से निकल गया-
“#आप_आ_जाइये_आपका_काम_हो_जाएगा_आज”
फिर उस दिन आफिस में ना स्टाफ पर गुस्सा किया, ना किसी कर्मचारी से बहस की। 100-50 गालियाँ तो रोज़ अनावश्यक निकल ही जाती थी मुँह से, पर उस दिन सारी गालियाँ…
“#कोई_बात_नहीं_इट्स_ओके” में तब्दील हो गयीं।
वो पहला दिन था जब #क्रोध_घमंड_किसी_की_बुराई, #लालच_अपशब्द_बेईमानी_झूठ_और_रिश्वत
ये सब मेरी दिनचर्या का हिस्सा नहीं बने।
शाम को आफिस से निकला, कार में बैठा तो बगल में बैठे ईश्वर को बोल ही दिया-
“प्रभु सीट बेल्ट लगालो,
कुछ नियम तो आप भी निभाओ…
उनके चेहरे पर संतोष भरी मुस्कान थी, घर पर रात्रि भोजन जब परोसा गया तब शायद पहली बार मेरे मुख से निकला।
“#प्रभु_पहले_आप_लीजिये’ और उन्होंने भी मुस्कुराते हुए निवाला मुँह में रखा। भोजन के बाद माँ बोली- “पहली बार खाने में कोई कमी नहीं निकाली आज तूने..!! क्या बात है?
सूरज पश्चिम से निकला क्या आज”।
मैंने कहा- “#माँ_आज_सूर्योदय_मन_में_हुआ_है..!!
“रोज़ मैं महज खाना खाता था, आज प्रसाद ग्रहण किया है माँ, और #प्रसाद_में_कोई_कमी_नही_होती।
थोड़ी देर टहलने के बाद अपने कमरे में गया, #शांत_मन_और_शांत_दिमाग के साथ तकिये पर अपना सिर रखा तो उन्होंने प्यार से सिर पर हाथ फिराया और कहा- “आज तुम्हे नींद के लिए किसी संगीत, किसी दवा और किसी किताब के सहारे की ज़रुरत नहीं है”।
गहरी नींद गालों पर थपकी से खुली।
“#कब_तक_सोएगा? जाग जा अब”। माँ की आवाज़ थी,
सपना था शायद, हाँ सपना ही था। पर नीँद से जगा गया, #अब_समझ_आ_गया_उसका_इशारा।
‘”#तुम_हमेशा_ईश्वर_की_नज़र_में_हो”