प्रभु की कृपा अपार
सुनो जी प्रभु की कृपा अपार,
निस्पृह हो कर कर्म करो तुम,यह गीता का सार l
गूँगे बोलें, बधिर सुन सकें, पंगु चलें पथ भाई,
राई को पर्वत कर देता, पर्वत करता क्षार l
सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l
पल में राजा रंक बने, या रंक बन सके राजा,
अदभुत लीला उसकी भाई, जाने ना संसार l
सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l
अपने कर्मो का फल ढोता, हो करके लाचार,
उसकी कृपा अगर मिल जाये, होता बेड़ा पार l
सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l
मिथ्या जग यह माया ठगनी, दर दर भटक रहे हैं,
जो जिसका प्रारब्ध मिले बस, ऐसा करो विचार l
सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l
“सत्य वद धर्ममचर “ श्रुति का है सिद्धान्त सदा से,
इसका ही तुम पालन कर लो, बाकी सब बेकार l
सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l
जीवन थोड़ा काम अधिक है, ऐसा ही तुम जानो,
प्राणी कर सत्कर्म यहाँ पर, करता मैं मनुहार l
सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l
काम क्रोध को जीत, मोह माया को त्यागो,
मान गये यदि बात हमारी, हो जाए उद्धार l
सुनो जी प्रभु की कृपा अपार l
9
मैं क्या लिखता,राम लिखाता,वही स्वयम लिख जाता l
उर में वह ही भाव जगाता, श्रेय मुझे मिल जाता l
मैं भजता हूँ राम नाम को, बस उससे है नाता,
अगर अँधेरा पाता मग में, वह ही राह दिखाता l
मेरा जीवन राम भजन में, सच मानो कट जाता,
क्या लेना इस लौकिक जग से,दुख में भी सुख पाता l
सब आडम्बर छोड़ जगत के, मन को यह समझाता.
जीवन धन्य मानता मैं हूँ, बस उसके गुण गाता l
निराकार है, निरालम्ब है, वही ऐक है ज्ञाता,
जितना उसे चलाना मुझको, उतने पग धर पाता l
ऊँगली मेरी कर में पकड़े, वह ही भाग्य विधाता,
लोभ, मोह का चक्कर छोड़ो, क्यों मन को भरमाता ?
जीव