प्रभा के डाकिये
लोक में आलोक फैले इसलिये जलते दिए है
तोड़ते कारा तिमिर को ये प्रभा के डाकिये है
मृतिका की देह लेकर
अंजुरी भर स्नेह लेकर
बाहे थामे वर्तिका की
उम्र भर जागा किये है।।।1
भुलकरके राह अपनी
ले रहे है थाह अपनी
दिगभ्रमित यायावरों की
मुक्ति का पीड़ा लिए है।।।2
रच रहा है निल अम्बर
ज्योत्स्ना का फिर स्वयम्बर
चांदनी पूरी गजल है
ये उसी के काफिये है।।।3
धेय के प्रति हो समर्पित
कर गये सर्वसं अर्पित
उन सहीदो के लिए अब
शेष केवल हाशिये है।।।4
प्रणाम यायावर ???