प्रत्युत्पन्नमति
प्रत्युत्पन्नमति
मन में चयन का ,
वृत्ति में विचार का,
चित्त में चित्रण का,
बुद्धि में समझ का,
आत्मा में आनंद का,
हृदय में अच्छे भाव का
करंट के तपाक सा।
त्वरित गति होती है,
यही तो प्रत्युत्पन्नमति होती है।
वर्तमान में रहने का,
मौसमी अहसास का,
ठंड में ठिठुरने का,
बारिश में भीगने का।
तत्क्षण संकेत होती है है,
यही तो प्रत्युत्पन्नमति होती है।
यौवन का सुवास का,
स्वयं में आत्मविश्वास का,
हसीनाओं के आहट का,
अप्सराओं के नृत्य – नर्तन का,
सौंधी सौंधी मिट्टी का।
तत्काल बोध होती है,
यही तो प्रत्युत्पन्नमति होती है।
महकती गुलाबों का,
सजती महफिलों का,
ख्वाब बुनती दिलों का,
फूलों के कलियों का,
मंडराती भवरों का।
अतिशीघ्र खबर होती है ,
यही तो प्रत्युत्पन्नमति होती है।
झरती झरनों का ,
कल-कल ध्वनियों का,
आह्लादित वनों का
आच्छादित मेघों का
सरकती नदियों का
सरसराती सुर सरिताओं का
बरसती बूंदों का
फौरन पैगाम होती है,
यही तो प्रत्युत्पन्नमति होती है।
रचनाकार
संतोष कुमार मिरी
शिक्षक जिला दुर्ग