प्रतीक्षा…
प्रतीक्षा…
निरन्तर बिन पलकें झपकाए
प्यासे नयन टकटकी लगाये
पथ बुहारें जहाँ तक जाती नज़र
मूक, ढूँढे तुम्हें डगर-डगर
तुम कब आओगे?
बेसुध अधूरा सा श्रिंगार
कसकता प्राणो का हर तार
सुने सपने, विरह की जलन
नित बाट जोहता आँगन
तुम कब आओगे?
सूखे पत्तों की सरसराहट
बेचैन मन और घबराहट
भीगी पलकों पर टिकी आस
झरती बूँदो में विश्वास
तुम कब आओगे?
सवेरे काग़ा बैठा मुँडेर
संदेसा देता, अब क्या देर
गूँजता हृदय में संगीत
मधुर मिलन की आशा मीत
तुम कब आओगे?
रेखा