प्रकृति
प्रकृति
मोर करे है नृत्य मनोहर
प्रीत दिखावे किसे घनी।
कोयल गाये मधुरिम वाणी
मीठे से रस गीत सनी।
हरियाली है चहुँ दिशि छायी
मन उपवन में हर्ष खिला।
बगियन में हैं झूला झूले
जीवन को उत्साह मिला।
अद्भुत सा संसार बना है
बिजली घन में आज ठनी।
तरह-तरह के पुष्प खिले हैं
खेतों की शोभा न्यारी।
बागों में कोयलिया गाये
लगती है सबको प्यारी।
भौरें अपने सुर में छेड़ें
आकर्षण का केंद्र बनी।
मदमस्त पवन डोले हर्षित
पुष्पों का मन देख खिला।
घनन घनन घन मेघा गरजे
रहा धरा को अमिय पिला।
धरती भी प्रियवर को देखे
व्याकुल सी हो रही धनी।
डॉ सरला सिंह “स्निग्धा”
दिल्ली