प्रकृति पूजन (कार्तिक मास)
देव देवादि अब जगे, होय सुमंगल काज ।
जागे अब गुरु वृहस्पति, खूब बजेगें साज ।।
पुनम कार्तिक मास को, होय पवित्र स्नान ।
पूजे जल धूप दीप से, रख नदियों का ध्यान ।।
तुलसी पूजे मास में, आवंल नवमी साथ।
पूजत है वट वृक्ष भी, जुड़ते सबके हाथ ।।
सिखलाता है मास हमें, धरती सबकी मात ।
विटप सरिता और धरा, पूजत जिनको तात ।।
इनसे ही जीवन चले, करे न दूषित वास ।
पूजा जिनकी हम करे, माने जिनको खास ।।
(कवि- डॉ शिव लहरी )