Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Jun 2024 · 5 min read

परामर्श शुल्क –व्यंग रचना

पेशे से डॉक्टर हूँ, और चूंकि मेरे घर का खर्चा भी इसी डॉक्टरी से चलता है, तो जाहिर है, मेरी नज़रें परामर्श शुल्क पर वैसे ही टिकी रहती हैं जैसे पंडितजी पूजा पाठ कराके यजमान की तरफ दक्षिणा की आशा से देखते हैं। मरीज़ हैं न, वे भी जानते हैं कि वकील और डॉक्टर की फीस दिए बिना परामर्श फलता नहीं है। मजदूर का पसीना सूख जाने से पहले मजदूर की मजदूरी और डॉक्टर के चैंबर से चले जाने से पहले डॉक्टर की फीस की अदायगी बहुत जरूरी है! इसलिए मेरे मरीज मेरे परामर्श शुल्क को ‘साम, दाम, दंड, भेद’ किसी न किसी प्रकार से मुझे देना ही चाहते हैं। यह एक प्रकार से पुरानी बार्टर प्रणाली का रूप भी है, जहां मेरे परामर्श का भुगतान अर्थ के अलावा भी धर्म, काम, मोक्ष प्राप्ति के तरीकों से करना चाहते हैं। शायद मेरे मरीजों ने डीमोनीटाइजेशन को गंभीरता से ले लिया है, कैशलेस प्रणाली को भी अपना लिया है, इसलिए ज्यादातर जब भी आते हैं, अपनी पतलून की जेब को उल्टा करके अपने कैशलेस होने का प्रमाण भी दे देते हैं। वैसे भी इस देश में सलाह तो सरकार द्वारा बांटी जा रही फ्री की रेवड़ियों की तरह मुफ्त में बंट रही है। अब भला कोई सलाह के भी पैसे देगा? जितने सलाहकार हैं, उससे ज्यादा मुफ्त के सलाहखोर हैं जो दिन-रात गली, चौराहे या मोहल्ले में मुफ्त की सलाह के लिए मारे फिर रहे हैं! और इन मुफ्त के सलाहखोरों के लिए बाबा, अघोरी, चमत्कारी देसी इलाजी, पहलवान, मालिश, टायर वाला सभी अपनी-अपनी तरफ से समाज सेवा में लगे हुए हैं। ये अंग्रेजी दवाओं से वैसे भी लोगों को इतनी नफरत है कि देसी इलाजी को भी अंग्रेजी दवाइयां इसबगोल की भूसी में पीस कर देनी पड़ रही है।
खैर, मुझे मेरा परामर्श शुल्क मिल ही जाता है, और मुझे जिस भी रूप में मिलता है, मैं शिरोधार्य कर लेता हूँ। ‘साम’ के रूप में कुछ लोग परामर्श शुल्क अदा करते हैं, जो सामान्यतया मेरे कुछ जान-पहचान के लोग, कुछ गुणीजन, त्रिकालदर्शी, शास्त्रों के ज्ञाता, दर्शनशास्त्री होते हैं। ये लोग मुझे समझाते हैं कि इस दुनिया में पैसा क्या है? हाथ का मैल है। रिश्तेदारी और पहचान भी कोई चीज होती है। क्या लेकर जाएंगे, क्या लेकर आए थे! आपने फलां डॉक्टर साहब का नहीं सुना, चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए, बहुत लूटते थे, आखिर में क्या हुआ, यूं ही चटाक से चल बसे, कोई दाह संस्कार में लकड़ी लगाने भी नहीं पहुंचा। ‘आप हमारे काम आए, हम कभी आपके काम आएंगे’ और इस प्रकार हमारी परामर्श की अदायगी ‘साम’ स्वरूप हो जाती है।
‘दाम’ स्वरूप कुछ लोग हैं जो बेचारे किसी भी सरकारी या गैर-सरकारी महकमे, संस्थाओं से नहीं होते, यहाँ तक कि शहर के किसी छुटभैये सरीखे नेता तक की पहुँच नहीं होती। ये हैं असली आम आदमी जिसे बहुत पहले हाशिये पर धकेल दिया गया है, जो सिर्फ और सिर्फ अपना इलाज कराना चाहता है। वह सबसे पहले आपकी फीस अदा करेगा क्योंकि उसे लगता है कि डॉक्टर साहब कहीं इलाज में कसर न छोड़ दें। इसके पास न तो सरकारी स्कीम का बना कार्ड है, न ही खाद्य सुरक्षा योजना में इनका नाम! इसका नाम खाद सुरक्षा योजना से बहुत पहले कट चुका है, कारण भी स्पष्ट है, सरपंच के वोट पड़े तब इसने विरोधी उम्मीदवार को वोट दिया था, सरपंच ने इससे बदला लेने के लिए, गाँव में मिले खाद सुरक्षा कोटे में से इसका नाम कटवा दिया। इसे हम अन्नदाता कहते हैं, हाँ ये मेरा अन्नदाता है, इसके पैसे से मेरे घर में भी चूल्हा जलता है, अगर ये नहीं हो तो सिर्फ साम, दंड, भेद से मेरा जीवन यापन कैसे हो भला?
‘दंड’ स्वरूप अदायगी के लिए तो सभी सरकारी महकमे हैं, जो अपने आपको स्टाफ का आदमी बताकर हमें परोक्ष रूप से डरा-धमका कर सलाह ले जाते हैं। पुलिस विभाग इसमें सबसे अग्रणी है। बाकी हर कोई सरकारी महकमा परामर्श लेने से पहले अपने-अपने संबंधित विभाग से जुड़ी खामियां पहले मेरे हॉस्पिटल में चक्कर लगाकर अपनी उंगलियों पर गिनता है, और परामर्श देने के साथ ही हमें फजीहत देता है, इस आशा के साथ कि ‘ये तो हम हैं जो नजरअंदाज कर रहे हैं, नहीं तो नोटिस थमाने में रत्ती भर भी देरी नहीं करेंगे।’ बिजली विभाग, नगर परिषद, पत्रकार विभाग, वकील सभी अपने-अपने तरीके से हमारी करस्तानी और कारगुजारियों का कच्चा चिट्ठा खोल कर हमें वाकिफ करा देते हैं कि डॉक्टरी ऐसे ही नहीं चलेगी, स्टाफ का विशेष ख्याल रखना पड़ेगा।
फिर गलती से आपने परामर्श इनके किसी रिश्तेदार या इनकी आगे और पीछे की सात पीढ़ियों में से किसी से ले भी लिया न तो दूसरे दिन नोटिस आपको परोस दिया जाता है। नोटिस के साथ ही धमकी भरा संदेश भी—”डॉक्टर साहब, आप हमारा खयाल नहीं रखते क्या करें, आपने पहचाना नहीं हमें?”
सच पूछो तो कई बार मैंने कहा भी कि ‘भाई, मैं आपके स्टाफ का कैसे हो गया? मेरा आपका महकमा अलग है।’ लेकिन वो परोक्ष रूप से कहना चाहते हैं कि ‘हम भी आपको हमारे महकमे द्वारा की जा रही लूटपाट, जबरन वसूली जैसे ही गुनों से सराबोर समझते हैं, इसलिए आपको हमारे स्टाफ होने का दर्जा दे रहे हैं।’ उनकी नजर में स्टाफ में सम्मिलित करना मुझे किसी पद्म चक्र से कम सम्मानित करना नहीं है!
‘भेद’ के रूप में ज्यादातर आपके करीबी रिश्तेदार और दोस्त होते हैं, जो आते ही आपकी पास्ट लाइफ के कच्चे चिट्ठे खोलने लगते हैं। उन्होंने आपकी कारगुजारियों की लंबी लिस्ट बना रखी होती है जो ज्यादातर उनके ज्ञानेंद्रियों के कल्पनातीत प्रयोग से सूंघकर, महसूस कर, देखकर बनाई है। तब आपको अपनी औकात पता लगती है जब कोई ज्योतिषी झाड़ कर कहेगा ‘ग्रह गोचर खराब है, शनि कमजोर है, साढ़ेसाती बैठ गई है, शुक्र जो शनि का दुश्मन है वो 1, 9, 12 भाव में बैठ गया है।’ उन्हें पता है आपका झगड़ा पड़ोसी से, आपके ऊपर चल रहे कोर्ट केस, आपके ऊपर का कर्ज और सभी के बारे में एक अनुभवी सलाह परोसते हुए, ‘इस हाथ ले उस हाथ दे’ का फर्ज निभाते हुए आपकी सलाह ले रहे हैं। कुछ अहसास कराएंगे कि आपके द्वारा पिछले जनम में या इस जनम में उनके किसी परिवार में या दूर के रिश्तेदार के किसी मरीज का इलाज किये जाने की गलती कर दी थी, उसे कोई फायदा नहीं पड़ा फिर उसने जयपुर, मुंबई के किसी तीसमार खां डॉक्टर को दिखाया वहां देढ़ लाख खर्च किया तब फायदा पड़ा! इसके साथ ही ये भी अहसान दिलाएंगे कि जाना तो उनको भी वहीं है, बस एक बार दुबारा तुम्हें मौका दे रहे हैं, दुबारा हमारा इलाज करने की गलती करने का, लेकिन भूल कर भी फीस मत ले लेना!
डॉक्टर की जिंदगी भी किसी जादुई चिराग से कम नहीं, रगड़ते रहो, शायद कोई जिन्न निकल आए और ये ‘गोलमाल है सब गोलमाल है’ की दुनिया थोड़ी सरल हो जाए!
रचनाकार -डॉ मुकेश ‘असीमित’

218 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

मनुष्य...
मनुष्य...
ओंकार मिश्र
राखड़ी! आ फकत
राखड़ी! आ फकत
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
कभी कभी जो जुबां नहीं कहती , वो खामोशी कह जाती है । बेवजह दि
कभी कभी जो जुबां नहीं कहती , वो खामोशी कह जाती है । बेवजह दि
DR. RAKESH KUMAR KURRE
ए सी का किरदार
ए सी का किरदार
RAMESH SHARMA
वक्त
वक्त
Atul "Krishn"
Shankarlal Dwivedi reciting his verses in a Kavi sammelan.
Shankarlal Dwivedi reciting his verses in a Kavi sammelan.
Shankar lal Dwivedi (1941-81)
****बसंत आया****
****बसंत आया****
Kavita Chouhan
दिल की बात
दिल की बात
Bodhisatva kastooriya
दहेज मांग
दहेज मांग
Anant Yadav
एक दिया बहुत है जलने के लिए
एक दिया बहुत है जलने के लिए
सोनम पुनीत दुबे "सौम्या"
..
..
*प्रणय प्रभात*
जिंदगी
जिंदगी
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
बौराया मन वाह में ,तनी हुई है देह ।
बौराया मन वाह में ,तनी हुई है देह ।
Dr. Sunita Singh
"किवदन्ती"
Dr. Kishan tandon kranti
याद रख कर तुझे दुआओं में,
याद रख कर तुझे दुआओं में,
Dr fauzia Naseem shad
कुछ लोग बहुत पास थे,अच्छे नहीं लगे,,
कुछ लोग बहुत पास थे,अच्छे नहीं लगे,,
Shweta Soni
यह तो कोई इंसाफ न हुआ .....
यह तो कोई इंसाफ न हुआ .....
ओनिका सेतिया 'अनु '
कौन मनाएगा तुमको
कौन मनाएगा तुमको
Shekhar Chandra Mitra
कौन कमबख्त नौकरी के लिए आता है,
कौन कमबख्त नौकरी के लिए आता है,
Sanjay ' शून्य'
अध्यात्म क्या है ?
अध्यात्म क्या है ?
Ragini Kumari
दग्ध नयन
दग्ध नयन
Dr. Ravindra Kumar Sonwane "Rajkan"
गर्मी की लहरें
गर्मी की लहरें
AJAY AMITABH SUMAN
तीन मुक्तकों से संरचित रमेशराज की एक तेवरी
तीन मुक्तकों से संरचित रमेशराज की एक तेवरी
कवि रमेशराज
गज़ल काफिर कौन
गज़ल काफिर कौन
Mahender Singh
- वह मूल्यवान धन -
- वह मूल्यवान धन -
Raju Gajbhiye
आके चाहे चले जाते, पर आ जाते बरसात में।
आके चाहे चले जाते, पर आ जाते बरसात में।
सत्य कुमार प्रेमी
लोकोक्तियां (Proverbs)
लोकोक्तियां (Proverbs)
Indu Singh
एक लड़की एक लड़के से कहती है की अगर मेरी शादी हो जायेगी तो त
एक लड़की एक लड़के से कहती है की अगर मेरी शादी हो जायेगी तो त
Rituraj shivem verma
उसे तो आता है
उसे तो आता है
Manju sagar
हाइकु : चाय
हाइकु : चाय
Sushil Sarna
Loading...