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18 Oct 2024 · 1 min read

खोटा सिक्का....!?!

एक चवन्नी सोने की तू, हाँ मैं खोटा सिक्का हूँ
जज़्बातों से तू है खेले, मैं वादों का पक्का हूँ

तू मधुमास–मधुप मँडराए
काला–दिल कोकिल तू गाए
मेरे मन का प्रीत–पपीहा
पिऊ–पिऊ रह–रह चिल्लाए

मेरे दर्द का तू जो मज़ा ले, हाँ मैं हँसी का किस्सा हूँ
जज़्बातों से तू है खेले, मैं वादों का पक्का हूँ

मैं तो जीवन–भर युँ ऐसे
जल–तरंग पर गाऊँगा
तेरी यादों को बुन–बुनकर
सुधियों में लहराऊँगा

पनघट गिर तू ऐसे खनके, सुनके हक्का–बक्का हूँ
जज़्बातों से तू है खेले, मैं वादों का पक्का हूँ

जिंदगी मानो घुटन जाम हो
धूल में लिपटी हुई शाम हो
भीड़ में रीती सूनसान हो
मनवा मेरा तेरे नाम हो

ऐसा रचा चरित जो तूने, देखके मैं भौचक्का हूँ
जज़्बातों से तू है खेले, मैं वादों का पक्का हूँ

पहले चाहा फिर बिसराया
माना अपना फिर ठुकराया
खेल जो तूने खूब जमाया
फेंटके पत्तों सा बिखराया

ताश के पत्तों की तू रानी, तो मैं जोकर इक्का हूँ
जज़्बातों से तू है खेले, मैं वादों का पक्का हूँ

–कुँवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह✍🏻
★स्वरचित रचना
★©️®️सर्वाधिकार सुरक्षित

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