प्रकृति की होली
फिजाएं खेल रहीं होली….
फिजाएं खेल रहीं होली…
झरें ओस के कण
भिजायें धरती के
दामन और चोली..
कमसिन शाखों पर
रंग चढ़ा
मस्तक पर शोभित
फूलों की रोली..
फूली सरसों यूं झूम रही
ज्यों मस्तों की टोली..
कण- कण में
केसर सा घुला हुआ
भ्रमरों ने खोली
सुरभि की झोली..
पंखुरियां झर झर कर
सजा रहीं
मनभावन, मनहर रंगोली…
कान्हा की धुन पर
कोयलिया भी
बजा रही मुरली …
पत्ता पत्ता थिरक रहा
डाली- डाली डोली…
हवा संग बनकर हमजोली
फिजाएं खेल रहीं होली…
फिजाएं खेल रहीं होली।