प्रकृति का मिलन
आज आंख खुलते ही मेरी
कुछ अद्भुत अहसास हुआ।
प्रात आज आनन्दमयी है
देखा बाहर उल्लास हुआ।
धरती की वो सघन प्रतीक्षा
वारिद से मिल पूर्ण हुई ।
महक उठी चहुं ओर मिलन की
आज सृष्टि सम्पूर्ण हुई ।
पेड़ों की शाखायें भी
झूम-झूम कर गाये गान ।
खग कलरव ने एकजुट होकर
दे दी उनको मीठी तान ।
कितनी तप्त परीक्षा देकर
पयोद आज यूं आन मिला ।
धरती, पोखर, नदियां, तरू
सब कुटुम्ब का साथ मिला ।
इसी मिलन के उत्सव का
आनन्द घुला चहुं दिशि चहुं ओर ।
धरा आज है पूर्ण यौवना
श्रृंगार सभी उसके बेजोड़ ।
बिखर रही थी धरा विकल सी
पा पयोद सब शान्त गात ।
ऐसे शान्त हुई है जैसे
आती उसको सबसे लाज ।
सूर्य देव भी दृश्य देखते
लेकर आसमान की ओट ।
वो भी समक्ष न आना चाहे
ले जाने को संग पयोद ।
आज कुटुम्ब है पूर्ण धरा का
गर्वित है उसका स्वाभिमान ।
आन मिला मेरा प्रिय मुझसे
भेद सभी पथ के अवधान ।
सुखद मिलन इस सृष्टि का
नयन देख पाते मन मोद ।
मत अधीर हो मन समझाता
हर वियोग का है संयोग ।