प्रकृति का उपहार है बरसात
कितने अलग होते हैं
बरसात के दिन,
यह अनुपम उपहार है
धरा के लिए प्रकृति का,
बरसात
हर्षित करती है-
किसानों को
जब लहलहाती हैं फसलें
बरसात की मोती जैसी बूँदों से।
प्यासी धरती गुनगुनाती है-
जब हर लेती है धरा की संताप
जब भरती है धरती की फटी बिवाई
अपनी अमूल्य श्वेत बूँदों से
यह सतरंगी बरसात।
धरा गुनगुनाने लगती है-
जब मेंढकों की टर्र-टर्र
से गूँजता है वातावरण,
और उत्पन्न होता है प्रतिनिनाद,
झींगुरों की शहनाई बज उठती है,
और मोर जब अपने पंख फैलाते हैं।
बरसात घोलती है चतुर्दिक,
प्रेम-रस, स्नेह-रस
और पूरा वातावरण,
मनोहारी हो जाता है-
जब नभ में दिखता है
सतरंगी मनभावन इन्द्रधनुष।