प्रकृति और मनुष्य।
आज मनुष्य ने प्रकृति से लेकर ही, प्रकृति को ही नुकसान पहुंचा रहा है। हमने जो भी खोजें की है,वे मनुष्य के परिश्रम को कम करती है। जिसके कारण मनुष्य आल्सी होता चला गया।मानव विकास के लिए ही हमने बहुत सारे संसाधनों की खोज की और मनुष्य के जीवन को सरल बनाया है।पर हमें प्रकृति को ध्यान में रख कर कोई भी खोज करना चाहिए थी। जिससे कि हमारी प्रकृति को नुक्सान न पहुंचे। लेकिन मनुष्य को हमेशा अपने जीवन को सफल बनाने के लिए तमाम तरह की खोजों को लेकर, अनुसंधान करता रहता है। और फिर बाद में प्रकृति की स्थिति खराब हो जाती है।
फिर संभाल न मुश्किल हो जाता है।यह सब प्रकृति ने हमें बना कर दिया था। हमने ही इस बात को नही समझ पाये है।कि नई नई खोजें चालू करें। ईश्वर के द्वारा ही हमें सब कुछ प्राप्त हो चुका था।