नदी
पहाड़ों के हृदय से निकली नदी
कोसों दूर तक है फैली नदी
बीच सफर में कहीं रूकती नहीं
बहती रहती कभी थकती नहीं
तेज रफ्तार है उसकी धारा
मिलते नहीं है उसके किनारा
निर्मल,स्वच्छ,शीतल उजली नदी
पहाड़ों के हृदय से निकली नदी
बहाकर साथ लाती ढेरों रेत
कभी सींचती कभी डुबाती खेत
सूरज की किरणों से जगमगाती
कभी धीरे कभी तेज छलछलाती
कहीं स्वच्छ तो कहीं मैली नदी
पहाड़ों के हृदय से निकली नदी
सफर में संगम होता नदियों का
तीर्थस्थल,कुम्भ मेला सदियों का
आगे बढ़ती सागर में मिलती है
सागर से महासागर बनतीं हैं
कितने ही रूपों में बदली नदी
पहाड़ों के हृदय से निकली नदी।
नूर फातिमा खातून “नूरी”
जिला- कुशीनगर
उत्तर प्रदेश