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26 Aug 2018 · 1 min read

प्यार

समझ समझकर डगर डगर प्यार किया तो क्या प्यार किया
सौदागर फ़ितरत कहीं इख़्तियार किया तो क्या प्यार किया

प्यार सफ़र है दो रूह का ,जानबूझकर किया नहीं जाता
चन्द लम्हें साथ रहकर इज़हार किया तो क्या प्यार किया

प्यार दो नैनों से शुरू होकर फ़िर सीने में खंज़र सा उतरता है
जिस्मानी इल्तिज़ा में किसी को यार किया तो क्या प्यार किया

प्यार सूरत ना सीरत ना ग़ुरबत देखकर किया जाता है कभी
किसी आशिके दिल को तार तार किया तो क्या प्यार किया

कुछ दिन ही मुस्कराये किसी की ज़िन्दगी में दाख़िल होकर
फ़िर तोड़कर दिल इश्के बाज़ार किया तो क्या प्यार किया

__अजय “अग्यार

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